ईद पे शीर खुरमा बनाया
था,
बड़े दिन पे दरख़्त भी
सजाया था
दीवाली पर मिठाई भी
बनायीं थी
फिर भी इल्म न हुआ
था
कौनसा खुदा रूठा हुआ
था
सरहद पार के दोस्तों
के साथ
कुछ गरम सालन-रोठ पकाये
थे
स्वाद उँगलियों पे
वाही पुराना था
रूह उनकी थी, जिस्म
हमारा था
नमक दोनों में एक माटी
का था
सात समंदर पार आये
तब ये भेद हमसे खुला
था
ज़बान, खून, और रूह
सब कुछ हमारा एक था
कुछ वक़्त पहले ये पता
चला था
कुछ नादानो से गुस्ताखी
हुई थी
जब ये मज़हब कि बुनियाद
डली थी
इनका खुदा, उनका खुदा
का शोर हुआ था
हमारी मज़जिद उनका कलीसा
का शोर हुआ था
राम-रहीम को अलग किया
गया था
इसा को सूली पे चढ़ाया
गया था
सुकरात ने ज़हर पिया
था
और इंसानो का क़त्ल
हुआ था
हमने तो ईद भी मनायी
थी
बड़ा दिन भी और दीवाली
भी
फिर कौनसा खुदा छूटा
था
एक पाक जान ने मुझसे
कहा था
तूने सारे खुदाओं को
पूजा था
बस बशर से एक बशर छूटा
था